Method of Meditation -ध्यान की पद्धति

ध्यान (meditation) की मूलतः तीन प्रचलित विधि है कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग. ध्यान को विधि बताते हुये हमारे शास्त्रों में साक्षी रूपी मंजिल को पाने की ये तीन विधियाँ बताया है जिसमे पहले कर्म का जगत है जो कुछ किये रहा ही नहीं जा सकता उसके लिए कर्म और ध्यान को मिलाकर कर्मयोग फिर दुसरे तल पर विचार का जगत है जिसमें की साधक को चाहे वह शांत ही क्यों ना बैठा हो विचार का निरंतर प्रवाह चलता रहता है और रोके ना रुकता हो उसके लिए विचार के साथ ध्यान या कहे ध्यानपूर्वक विचार जिसे ज्ञानयोग कहा गया है और तीसरे में भाव का जगत है. भाव याने भक्ति या प्रेम कह सकते है जिसमे की भक्त को भावविभोर हो अश्रुधारा बह रहा हो उसेके प्रेम में सरोबार हो जाने को ही भक्तियोग का नाम दिया गया है. लेकिन तीनो ही दशाओं में पहुचना साक्षी की ही भावदशा में होता है यानि की ध्यान एक विधि है और साक्षी मंजिल है. जैसे कोई वैध औषधि को लेने की विधिया बताता है की चाहो तो शहद, दुध या पानी तीनो में से किसी एक के साथ औषधि लेना होंगा उसी प्रकार से ध्यान एक औषधि है जिसे चाहे कर्म, विचार या भाव तीनो में से किसी एक के साथ जोड़कर ही किया जाना...