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Religion, Politics and Science – धर्म, राजनीति और विज्ञान

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धर्मं जहां पर नितांत अकेले का विषय है वहीं पर राजनीति भीड़ का रूप है. कोई भी यदि धर्मं के विषय में अन्य को शामिल करता है तो वह एक प्रकार से धर्मं का राजनीतिकरण ही कर रहा होता है हलांकि वह यह बात मानने को कतई तैयार नहीं होंगा अपितु फिर भी वह धर्मं के बुनियादी और आधारभूत सूत्र में चूक कर रहा होंगा. पूरी दुनिया आज राजनीति का वीभत्स रूप देखने मजबूर है. पूरी मानवता कराह रही है. ठीक उसी प्रकार से तथाकथित जो भी धर्म है उसने भी राजनीति से कोई कम जुल्म नहीं ढाया है. दुनिया के इतिहास में तथाकथित धर्मं और राजनीति ने जितना जुल्म ढहाया है उतना किसी और ने कभी नहीं ढहाया है इसलिए तो ये तथाकथित धर्मं, धर्म ना होकर एक संप्रदाय मात्र रह गए है. हर धर्मं अपने को दुसरे से श्रेष्ठ बताने की होड़ में दिखाई देता है. धर्मं से जहां शांति और सदभाव का झरना बहना चाहिए था वहा पर घोर अशांति और उपद्रव का अयोजन चहुओर किया जा रहा है. दुनिया में शांति और खुशहाली लाने विज्ञान ने अथक परिश्रम किया है लेकिन उनकी उपलब्द्धियो पर राजनीति का ग्रहण लग गया है. राजनीति आज सब पर भारी पड़ गया है. इतनी ताकत आखिर राजनीति को कहा से मिला यह...