Dhyan – ध्यान

ध्यान निर्विचार होने की एक कला है. ध्यान meditation नहीं है जैसे आजकल Dhyan के लिए अंग्रेज़ी में मैडिटेशन शब्द का उपयोग किया जाता है वह सही नहीं है. मैडिटेशन एक प्रकार से विधि है, एक प्रकार से कोई क्रिया है जिसको किया जाता है जिसमे आँखे बंद कर शांत होना सिखाया जाता है जबकि ध्यान विधि ना होकर एक कला है जो विचार शून्य होने का ही नाम है जिसमे आँखे ही नहीं कान भी एक प्रकार से बंद मानकर चलना होता है. विचार शून्य की अवस्था को ही भारतीय मनीषियों ने ध्यान का नाम दिया था जो निरंतर अभ्यास से प्राप्त किया जा सकता है. दरअसल ध्यान वह अवस्था है जिसमे करते करते एक समय करने का भाव भी खो जाये यानि कर्ता होने का भाव तो मिट ही जाए साथ ही कार्य का भाव भी तिरोहित हो जाय. ऐसी भावदशा का नाम ही ध्यान है. जब तक कुछ भी करने का बोध है तब तक हम ध्यान की गहराई में नहीं पहुच सकते. हो जाना जिमसे कुछ करना ना पड़े बस हो जाये वह ध्यान की ही भाव भंगिमा का नाम है. जिसमे विचार भी पीछे छुट जाये और ध्यानी को अपना होने का भी भान ना रहे. हा, लेकिन शुरुआत तो ध्यान को करने से ही शुरू करना होंगा जो ना करने की स्थिति तक पहुचते पहुच...