Patanjali Yog पतंजलि योग दर्शन,
महर्षि पतंजलि ने अपने योग शास्त्र में जिन आठ योग क्रियाओ अष्ठांगिक योग का वर्णन किया है उसमे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी को समाहित किया है. यम में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह को व नियम में पवित्रता, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर शरणागति अर्थात् प्राणिधान तथा आसन में सुखासन सिद्धासन और पद्मासन अर्थात् स्थिर और सुखपूर्वक जिसमे बैठा जा सके. प्राणायाम क्रिया तो हम सब जानते ही है. प्रत्याहार अर्थात् सांसारिक विषयों के प्रति मन में जो आकर्षण है जिसमे वह सुख का अनुभव करता है उसके प्रति उसकी आशक्ति का त्याग हो जाता है वह अब इनके मोह को छोड़कर आत्मज्ञान की ओर आकर्षित होता है मन की इसी स्थिति को प्रत्याहार कहा गया है. धारणा जिसके आधार पर कोई स्वयं को कुछ विशेष मानकर सिद्धि को आत्मसात कर लेवे एवम् ध्यान जिसमें निर्विचार होने की कला आ जावे और अंत में समाधि को प्राप्त कर ले. यानि कि योग के शिखर को उपलब्ध हो जाये या ध्यानस्थ हो जाये.
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