Heaven, Hell, Salvation, Religion, स्वर्ग, नर्क, मोक्ष एवं धर्मं
स्वर्ग नर्क और मोक्ष वैसे तो मानसिक दशाओं की स्थिति का नाम है बावजूद अधिसंख्य लोग कल्पनाओ में स्वर्ग और मोक्ष को भौतिक जगत में कोई स्थान और परलोंगिक कोई लोक मानते है जहां पर होने से शरीरगत कोई भी दुख पीड़ा और संताप से इन्सान मात्र मुक्त होता है और जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है. दरअसल मनुष्य की कल्पना में औरो से श्रेष्ठ हो जाने की बहुत बड़ी लालसा छिपी होती है जिसका ही यह सूचक मात्र है. जहां तक बात नर्क की है तो यह भी कल्पनाओ के जगत की ही पैदावार है. वस्तुतः स्वर्ग नर्क और मोक्ष मानसिक तल का नाम है जिसमे सिर्फ जीया जा सकता है. कोई व्यक्ति नारकीय वातावरण में रहकर भी स्वयं स्वर्गातित अनुभव को उपलव्ध हो सकता है यह उसके मानसिक तल की गहराई और ऊचाई का ही प्रतिबिम्ब होंगा. हां, इतना जरुर तय है की इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए मनुष्य का जन्म जरुरी होंगा. इस चौराहे पर आना तो होंगा ही. मनुष्य का जन्म वो चौराहा है जहां से मनुष्य चाहे तो पशु भी हो सकता है और चाहे तो देवता. सब कुछ उनके मानसिक धरातल पर निर्भर करेगा. स्वर्ग और मोक्ष का रास्ता इसी चौराहे से ही होकर जाया जा सकता है यह तय है इसमे कोई संदेह नहीं रह गया है. मनुष्य होने से पूर्व स्वर्ग नर्क और मोक्ष की कल्पना तक बेमानी है. इसलिए जो मनुष्य अपने जन्म के उपरान्त उस अलौकिक स्थिति को प्राप्त करने की दिशा में कोई भी प्रयत्न नहीं करता है उसे ही हमारे शास्त्रों में अज्ञानी की उपमा दी गयी है. उपनिषद कहते है कि अज्ञानी अंधकार में भटकते रहते है जो सत्य प्रतीत होते है. उपनिषद ने आगे उसी में जोड़ा है की अज्ञानी तो अंधकार में भटकते ही है ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते है जरा सोचने वाली बात है. शायद ज्ञानी को अहंकार घेर लेता होंगा तभी तो वो महाअंधकार में भटक जाता है. धर्मं वस्तुतः कोई पंथ और संप्रदाय ना होकर इस पूरे अस्तित्व का नियम मात्र है जिसपर की पूरा ब्रम्हांड संचालित है. पानी का धर्मं शीतलता प्रदान करना है और आग का धर्मं तपीस का है उसी प्रकार से पूरे अस्तित्व का धर्मं को समझा जा सकता है. मनुष्य की धरती को केन्द्र में मानकर कुछ कोरी कल्पनाएँ की है जिसे ही लोग आज धर्म समझ बैठे है जिसने मनुष्यता का बहुत अहित भी किया है. इसलिए वास्तविक धर्मं की ओर हमें देखने की जरुरत है. धर्मं मतलब सत्य.
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