Rajimlochan, Kuleshwar Mandir, Mahanandi, राजिमलोचन, कुलेश्वर महादेव और महानदी
राजिम एक प्रसिद्ध तीर्थ नगरी है. भगवान राजीमलोचन और भगवान कुलेश्वर महादेव का यहाँ पर बहुत ही प्राचीन मंदिर है. महानदी समेत तीन नदीयों का यह पवित्र संगम भी है. इसे छत्तीसगढ़ का प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है. पूरे छत्तीसगढ़ से प्रदेश की जनता यहाँ पर श्राद्ध और पिंडदान समेत अस्थि विसर्जन के लिए नियमित रूप से आते है. भगवान कुलेश्वर महादेव का मंदिर तो महानदी के संगम पर नदीयों के बीचों-बीच स्थित है और इस कारण इस महादेव की मंदिर की महत्ता सबसे खास है. यह भगवान महादेव का सिद्ध पंचमुखी मंदिर है. आजकल यहाँ पर पहुचने के लिए शासन ने लक्ष्मण झुला बनवा रखा है ताकि टूरिस्टों और दर्शनार्थियों को किसी भी मौसम में भगवान महादेव के दर्शन में कोई बाधा ना आवे. जहां तक भगवान राजीमलोचन मंदिर की बात है तो इसे भगवान विष्णु के रूप में लोग पूजते है. लोकमान्यता के अनुसार भक्त माता राजिम जो यहाँ पर तेलिन मंदिर में विराजमान है उनसे ही भगवान विष्णु की यह मूर्ति लेकर तब के राजा जगतपाल ने इसे बनवाया था. और उन्ही भक्त माता के नाम पर मंदिर का नाम राजिमलोचन और इस नगर का नाम राजिम रखा गया था. राजिम नगरी आज पूरे छत्तीसगढ़ में श्रद्दा का एक बड़ा केंद्र है. इसकी ख्याति देखकर ही राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी ने इस नगरी को सबसे पहले नगर पंचायत बनाया साथ ही साथ राजिमलोचन महोत्सव का शुभारम्भ कराया. जिसे ही बाद की सरकार ने कुम्भ कल्प के रूप में आगे बढाया है. प्रत्येक वर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा के अवसर पर मेला भराता आया है. राजिम विधानसभा सीट भी है ये बात दीगर है की कभी इस नगर को मुकम्मल राजनेता नहीं मिला. कामचलाऊ नेताओं के प्रतिनिधित्व के कारण यहाँ का आज भी समुचित और व्यवस्थित विकास नहीं हो पाया. और जिस कारण यहाँ टूरिस्टों के आने, जाने, रुकने, ठहरने और खाने की व्यवस्था के लिए नवापारा नगर पर आश्रित रहना पड़ता है, हालाँकि महानदी के दूसरें छोर पर ही नवापारा नगर बसा है. बावजूद यह बात सालती तो जरुर है की राजिम को उनके प्रसिद्धि के अनुरूप विकसित नहीं किया जा सका है.
खैर, राजिम में राजिमलोचन मंदिर और कुलेश्वर मंदिर के अतिरिक्त बाबा गरीबनाथ महादेव का मंदिर, मामा-भांचा का मंदिर, खंडोवा देवी का मंदिर, भगवान दत्तात्रेय का मंदिर, माँ महामाया देवी का मंदिर व अन्य मंदिर भी चारो ओर विराजमान है. संत कवि पवन दीवान का यहाँ स्वर्ण तीर्थ घाट पर एक आश्रम भी है जो पवन दीवान के समाधिस्थ हो जाने के बाद से संस्कृत विद्यापीठ के रूप में विद्यमान है. कभी यह नगर संत कवि पवन दीवान के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ करता था. भगवान कुलेश्वर महादेव और भगवान राजिमलोचन की इस नगरी में जीवंत उपस्थिती का प्रमाण आज भी यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं में स्पष्ट देखा जा सकता है.
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