Dhyan – ध्यान
ध्यान निर्विचार होने की एक कला है. ध्यान meditation नहीं है जैसे आजकल Dhyan के लिए अंग्रेज़ी में मैडिटेशन शब्द का उपयोग किया जाता है वह सही नहीं है. मैडिटेशन एक प्रकार से विधि है, एक प्रकार से कोई क्रिया है जिसको किया जाता है जिसमे आँखे बंद कर शांत होना सिखाया जाता है जबकि ध्यान विधि ना होकर एक कला है जो विचार शून्य होने का ही नाम है जिसमे आँखे ही नहीं कान भी एक प्रकार से बंद मानकर चलना होता है. विचार शून्य की अवस्था को ही भारतीय मनीषियों ने ध्यान का नाम दिया था जो निरंतर अभ्यास से प्राप्त किया जा सकता है. दरअसल ध्यान वह अवस्था है जिसमे करते करते एक समय करने का भाव भी खो जाये यानि कर्ता होने का भाव तो मिट ही जाए साथ ही कार्य का भाव भी तिरोहित हो जाय. ऐसी भावदशा का नाम ही ध्यान है. जब तक कुछ भी करने का बोध है तब तक हम ध्यान की गहराई में नहीं पहुच सकते. हो जाना जिमसे कुछ करना ना पड़े बस हो जाये वह ध्यान की ही भाव भंगिमा का नाम है. जिसमे विचार भी पीछे छुट जाये और ध्यानी को अपना होने का भी भान ना रहे. हा, लेकिन शुरुआत तो ध्यान को करने से ही शुरू करना होंगा जो ना करने की स्थिति तक पहुचते पहुचते स्वतः हो जाना होकर ध्यान में रूपांतरित हो चुका होंगा. भगवान बुद्ध के बारे में कहा जाता है कि जब वे सत्य की खोज में घर से निकल पड़े तो छह वर्षो तक निरंतर विभिन्न साधना पद्धतियों जिसमे ध्यान एक महत्वपूर्ण विधि था करते रहे और एक दिन जब सब कर-कर के थक गए और कुछ भी नहीं करने का जैसे ही ख्याल आया वैसे ही वे ज्ञान को उपलब्ध हो गए. यानि कि गौतम से बुद्ध बनने की यात्रा पूरी हुई. यही ध्यान की सर्वोत्तम दशा है. meditation भी उपयोगी है शरीर के तल पर उसका भी अपना प्रभाव है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन dhyan की बात ही कुछ और है. वास्तव में ध्यान, समाधी को ही प्राप्त करने का मार्ग है. योग की विराटतम ऊचाई को छू लेने का नाम समाधी है. जीवन लक्ष्य की प्राप्ति का नाम समाधी है या समाधिस्थ हो जाना है.
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