Religion, Politics and Science – धर्म, राजनीति और विज्ञान

धर्मं जहां पर नितांत अकेले का विषय है वहीं पर राजनीति भीड़ का रूप है. कोई भी यदि धर्मं के विषय में अन्य को शामिल करता है तो वह एक प्रकार से धर्मं का राजनीतिकरण ही कर रहा होता है हलांकि वह यह बात मानने को कतई तैयार नहीं होंगा अपितु फिर भी वह धर्मं के बुनियादी और आधारभूत सूत्र में चूक कर रहा होंगा. पूरी दुनिया आज राजनीति का वीभत्स रूप देखने मजबूर है. पूरी मानवता कराह रही है. ठीक उसी प्रकार से तथाकथित जो भी धर्म है उसने भी राजनीति से कोई कम जुल्म नहीं ढाया है. दुनिया के इतिहास में तथाकथित धर्मं और राजनीति ने जितना जुल्म ढहाया है उतना किसी और ने कभी नहीं ढहाया है इसलिए तो ये तथाकथित धर्मं, धर्म ना होकर एक संप्रदाय मात्र रह गए है. हर धर्मं अपने को दुसरे से श्रेष्ठ बताने की होड़ में दिखाई देता है. धर्मं से जहां शांति और सदभाव का झरना बहना चाहिए था वहा पर घोर अशांति और उपद्रव का अयोजन चहुओर किया जा रहा है. दुनिया में शांति और खुशहाली लाने विज्ञान ने अथक परिश्रम किया है लेकिन उनकी उपलब्द्धियो पर राजनीति का ग्रहण लग गया है. राजनीति आज सब पर भारी पड़ गया है. इतनी ताकत आखिर राजनीति को कहा से मिला यह एक दूसरा पहलु है जिस पर सबको सोचने की जरुरत है. जहा तक बात धर्मं की है तो कालमार्क्स ने तो बता ही दिया है कि तथाकथित धर्मं ह्फीम की गोली है. तथाकथित इसलिए की मार्क्स को भी बुद्धो के धर्मं का कुछ पता ही नहीं था. नहीं तो वे धर्मं को हफीम की गोली कहने से बचते. लेकिन मार्क्स की बात 99% सच तो है ही. मात्र 99%. बुद्धो को जो ज्ञात हुआ धर्मं का स्वरुप उसकी ऊचाई को मापा नहीं जा सकता है. यहाँ बात उसी 1% की हो रही है जिसे ही नितांत अकेले का विषय कहा गया है. 99% तो राजनीति का ही वीभत्स रूप जानिये. विज्ञान इस अस्तित्व का दूसरा छोर है जिसका ही एक सिरा धर्मं है. विज्ञान और धर्मं एक दुसरे का पूरक है. आखिर दोनों ही सत्य तक पहुचना जो चाहते है. जब विज्ञान दो नहीं होता तो धर्मं कैसे दो हो सकता है. लेकिन राजनीति जो गुल खिलाये सो कम है.




टिप्पणियाँ