Theist-Atheist-Agnostic-आस्तिक-नास्तिक-अज्ञेयवादी
आस्तिक और नास्तिक में ज्यादा फर्क नहीं है क्योंकि दोनों ही मान्यताओं के आधार पर ही अपने को मात्र मान रखा है जानने का तो सवाल ही नहीं उठाया. माता-पिता, परिवार, शिक्षक और समाज ने ही उन्हें मान्यताओं के जाल में बांधा है. आस्तिक जहां एक ओर भगवान को मानता है बिना जाने की भगवान है या नहीं उसी प्रकार से नास्तिक भी यह मानता है कि जो दिखाई ही नहीं देता उसे क्यों माने. दोनों एक प्रकार से अन्धंमान्यताओं से ग्रसित है क्योकि दोनों ने ही जानने की जहमत नहीं उठाई. जानकर कि भगवान है या नहीं उस आधार पर कोई तत्वज्ञानी ही निष्कर्ष पर पहुच सकता है. साधारण मनुष्य तो मान्यताओं के खेल में ही उलझा रहता है. जिन्होंने भी उसे जाना फिर वो राम हो गए, कृष्ण हो गए, बुद्ध हो गए, महावीर हो गए, गोरखनाथ हो गए, पतंजलि हो गए, आदि शंकराचार्य हो गए, रामकृष्ण परमहंस हो गए, कबीरदास हो गए, मीराबाई हो गए और ना जाने कितने पहुच गए. हां, शर्त सिर्फ मानने को छोड़कर जानने की दिशा में कदम बढ़ाने वाले उन्नत आत्माये ही उसे जान सकता है इसमे कोई संदेह नहीं. पदार्थवादी कहे या फिर विज्ञानवादी ज्यादातर agnostic होते है जो जानने की दिशा में कदमताल कर रहे होते है और इस धारणा के होते है की भगवान हो भी सकता है और नहीं भी. लेकिन वे भी किसी फोर्स के होने का अनुमान व्यक्त करते रहे है. प्रकृति के रहस्यों से कभी पार भी पाया जा सकता है यह असंभव ही प्रतीत होता है क्योकि रहस्य का होना ही तो परमात्मा के होने का प्रमाण भी है. आज मनुष्य जाति दिन-रात, ठंडी-गर्मी, मौसमचक्र, गुरुत्वाकर्षण और ना जाने कितने रहस्यों से पर्दा उठा चूका है बावजूद विज्ञानं इस अनंत ब्रम्हांड के दशमलव में भी कुछ जान नहीं पाया है लेकिन भी ब्रम्हांड के रहस्यों को जान लेने की उसकी उत्कंठा इतनी तीव्र है की मनुष्यजाति एक दिन कभी अपने को जानने के काफी करीब भी पा सकता है हलांकि ऐसा होने में लाखो वर्ष लग सकते है. आज दुनिया में agnostic की संख्या बढती जा रही है. योरोप के देशो में एक बड़ा वर्ग धर्मो को मानने से अपने को आज असमर्थ पा रहा है जिसका लगातार विस्तार ही हो रहा है.
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