What is Sannyasa - सन्यास क्या है?
सन्यास जीवन का गहरा से गहरा सुगंध और गहरे से गहरा सत्य है. पहले तो बात सन्यास संसार से भाग जाने का नाम नहीं है यह जान ले. कर्तव्यों से भाग खड़ा होना को हम अभी तक सन्यास के नाम से जानते थे जो ठीक नहीं है. परिवार छोड़ देना, घर छोड़ देना, बच्चे छोड़ देना, पत्नी छोड़ देना और समाज से पीठ पीछे कर लेने का नाम सन्यास नहीं है. घर छोड़ कर पहाड़ो, पर्वतो और जंगलो में चले जाने का नाम भी सन्यास नहीं है. सन्यास एक विशुद्ध अध्यात्मिक घटना है जो बिना कुछ छोड़े सब कुछ स्वतः ही छुट जाता है. फिर घर में रहे या जंगल में कोई फर्क नहीं पड़ता. एक बात सन्यास घट गया तो समझो अपने घर में पहुच गए. उस घर में जिसमे कि योगियों ने लाख जतन कर पहुचना बताया है. सन्यास दुसरे पर आश्रित हो जीवन जीने का नाम भी नहीं है. बगैर उत्पादकता के कभी सन्यासी हुआ करते थे जिसका समय अब लदता जा रहा है. आज का सन्यासी बगैर उत्पादकता समाज पर बोझ मालूम पड़ता है. सन्यास के परिभाषा में राजा जनक का उदाहरण ज्यादा उपयुक्त लगता है. जो रहे तो जरुर राजमहल में लेकिन कुछ पकड़ ना रखे थे विदेही ही रहे. ऐसे रहे जैसे कि नहीं है और सब साक्षी होकर देखते रहे. करते तो थे लेकिन कर्ता का भाव तिरोहित हो चूका था. भगवान बुद्ध के बाद और आदि शंकराचार्य के साथ जो सन्यास का रूप भारतीय समाज में स्थान पाया उसमे ज्यादातर सन्यास एक घटना ना होकर क्रिया होकर रह गया जिससें धीरे-धीरे सन्यासी का विदुप्र चेहरा कुछ ऐसे सामने आया कि आज की पीढ़ी उसे स्वीकारने तैयार नहीं. वही सब छल प्रपंच जो आमजन में होते है उसी को सन्यासी में भी घटते देख लोगो की आस्था पर संकट के बदल भी छाते देखा गया. जिससे अनास्था का जन्म हुआ और आज बगैर उत्पादकता के सन्यासी समाज पर बोझ समझे जाने लगा है. सन्यास एक भावदशा है जिसमे की व्यक्ति रहता तो समाज में ही है जिसका परिवार और घर भी होता है लेकिन निर्लिप्त भावदशा के साथ. संसार में होते हुआ भी संसार से बाहर. कमलवत जैसे कमल जल में होते हुए भी जल से अलग ही रहता है. सन्यास कुछ कुछ ऐसा ही घटना है. संसार के अतिक्रमण का नाम सन्यास है. और परमात्मा सन्यास की सीढी से पंहुचा गया मंदिर है. संसार और सन्यास यात्रा के दो पड़ाव है. इस तरह से संसार का प्रगाढ़ अनुभव है सन्यास. संसार और सन्यास दो विरोधी बाते नहीं है. सार तो यह कि सन्यास समस्त जीवन की एक कला है. और केवल वे ही लोग सन्यास को उपलब्ध हो पाते है जो जीवन की कला में पारंगत है. सन्यास जीवन के पार जाने वाली कला है जो जीवन को उसकी पूर्णता में अनुभव कर पाते है वे अनायास ही सन्यास में प्रवेश कर पाते है.
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