india-भारत

एशिया माने सूर्योदय का देश और यूरोप यानि सूर्यास्त का देश. पूरब के देश यानि अध्यात्म की भूमि और पश्चिम के देश यानि विज्ञान के जन्मदाता. जहां भी अध्यात्म का फुल खिला समझो पूरब की बात हो रही है और जहां पर भी विज्ञान की ऊचाईयों को छू लेने की बात हो रही है समझो पश्चिम में पहुच गए. जीवन के सत्य तक पहुचने के दो राजमार्ग है जिसका ही यह प्रतीक है ऐसा माना जा सकता है. पूरब के देशो में भी कोई खास जगह है जहां योग के किन्ही-किन्ही क्षणों में जीवन के अंतिम सत्यो से योगियों ने साक्षात्कार किया और मानवता के कल्याण के मार्ग सुझाया उस भूमि को ही कालान्तर में भारतवर्ष और आज भारत (india) के नाम से पूरी दुनिया पहचानती और जानती है. पश्चिम में जैसे विज्ञान की सर्वोच्च ऊचाई को छूने वाले अलबर्ट आइन्स्टाइन हुआ वैसे ही पूरब में अध्यात्म विज्ञानं के पहले वैज्ञानिक भगवान गौतम बुद्ध को माना जाता है. हलांकि भारत भूमि का सम्पूर्ण परिचय तो भगवान कृष्ण के जीवन दर्शन में ही मिलता है जो जीवन के सम्पूर्ण विधाओ के पोषक है. बावजूद जो अंतर्दृष्टि भारत को मिला उसे हम बुद्ध के रूप में ही जानते है. इसतरह बुद्ध पहले वैज्ञानिक है धर्म के, अध्यात्म के इसमे कोई संदेह नहीं. भारत के परिचय में जहां जीवन के एक छोर पर कृष्ण का गीता का दर्शन सर्वशुलभ है वही दुसरे छोर पर महागीता यानि अष्ठावक्र संहिता रूपी ग्रंथ मानव जीवन को सदियों से राह दिखाते आ रहे है. नदी के दो छोर की तरह जीवन के दो छोर पर जहां कृष्ण की गीता और अष्ठावक्र की महागीता मानवता के कल्याण में भारत भूमि की खास पहचान है और इसलिए ही भारत को धर्मं और अध्यात्म की जननी के रूप में प्रतिष्ठापित करता है यह दो सदग्रंथ. यह भारत के जीवन में स्वाद के दो पर्याय भी है. जिसके बगैर भारत बेस्वाद और कुछ फीका-फीका लगता. कृष्ण का धर्मं जहां नाचता गाता और उत्सव मनाता हुआ है वही पर बुद्ध का धर्म शून्य के महाविराट में प्रवेश पाता हुआ है जहां शून्य के अतिरिक्त कुछ और नहीं बचता है. विराट से विराटतम हो जाने के राजमार्ग का नाम ही शून्य में प्रवेश है. इसतरह भारत की अध्यात्मिक धरोहर को सहेजने की कला में सिद्धस्थ हो जाने का नाम अध्यात्म विज्ञान है. भारत के भू-राजनैतिक इतिहास को इतिहासकार की ही दृष्टि से देखना जहा श्रेयस्कर होंगा वही भारत की मिट्टी से उडती खुशबु को सूंघकर योगियों सी दशा को प्राप्त हुआ जा सकता है. इसके लिए कुछ बचाएं नहीं रखना चाहिए और सारे जतन किया जाना चाहिए. भारत का सार इसी में सन्नहित है. कृष्ण पतंजलि बुद्ध और गोरख भारत के चार स्तंभ है जिसमे भारत रूपी राष्ट्र का अभ्युदय हुआ है.







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