सन्यास जीवन का गहरा से गहरा सुगंध और गहरे से गहरा सत्य है. पहले तो बात सन्यास संसार से भाग जाने का नाम नहीं है यह जान ले. कर्तव्यों से भाग खड़ा होना को हम अभी तक सन्यास के नाम से जानते थे जो ठीक नहीं है. परिवार छोड़ देना, घर छोड़ देना, बच्चे छोड़ देना, पत्नी छोड़ देना और समाज से पीठ पीछे कर लेने का नाम सन्यास नहीं है. घर छोड़ कर पहाड़ो, पर्वतो और जंगलो में चले जाने का नाम भी सन्यास नहीं है. सन्यास एक विशुद्ध अध्यात्मिक घटना है जो बिना कुछ छोड़े सब कुछ स्वतः ही छुट जाता है. फिर घर में रहे या जंगल में कोई फर्क नहीं पड़ता. एक बात सन्यास घट गया तो समझो अपने घर में पहुच गए. उस घर में जिसमे कि योगियों ने लाख जतन कर पहुचना बताया है. सन्यास दुसरे पर आश्रित हो जीवन जीने का नाम भी नहीं है. बगैर उत्पादकता के कभी सन्यासी हुआ करते थे जिसका समय अब लदता जा रहा है. आज का सन्यासी बगैर उत्पादकता समाज पर बोझ मालूम पड़ता है. सन्यास के परिभाषा में राजा जनक का उदाहरण ज्यादा उपयुक्त लगता है. जो रहे तो जरुर राजमहल में लेकिन कुछ पकड़ ना रखे थे विदेही ही रहे. ऐसे रहे जैसे कि नहीं है और सब साक्षी होकर देखते रहे. करते तो थे...