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Nand Kumar Sahu Murmura Rajim-नंदकुमार साहू मुरमुरा राजिम

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नंद कुमार साहू मुरमुरा राजिम फोटो

भारत में लोकतंत्र -Democracy in India

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भारत हमेशा से लोकतान्त्रिक देश रहा है. इसकी बुनियाद में ही लोकतंत्र की छाप देखने मिलती है. यहाँ की सभी धर्मंग्रंथो में इसकी भीनी खुशबु बिखरी पड़ी है. जानकार मेरे इस मत से सरोकार जरुर रखेंगे खासकर अध्यात्मवेत्तावो और ऋषियों का वर्ग. मनुस्मृति के बाद से पिछले 3000 सालों में हलांकि यह काफी छीन हुआ है इसमे कोई संदेह नहीं. भारत की आत्मा को कलुषित करने का पाप इसी एक धर्मग्रन्थ कहे जाने वाले मनुस्मृति के हिस्से आता है नहीं तो भारत का उज्ज्वल अतीत और इतिहास रहा है इसमे कोई दो मत नहीं हो सकता है. कृष्ण के समय और महाभारत काल में इस देश की सभ्यता ने जो ऊचाई छुआ वो फिर दोबारा देखने नहीं मिला इसका कारण भी मनुस्मृति को ही जाता है. समाज में विष वमन का काम पिछले 3000 सालों में ही हुआ है यह सिद्ध हो चूका है. और फिर लोकतंत्र का क्षरण लगातार देखने को मिलता है जिसमें की मनुष्य की गरिमा को चोट पहुचाने का घृणित कार्य भी शामिल है. शुद्रो के साथ भारत में जो घटा वह दुनिया में कही देखने और सुनने नहीं मिलता है. सब मनु महराज की कृपा रही. और इसी एक कारण भारत लगभग 2000 सालों तक गुलाम भी रहा. वर्णा आत्मा को अमर माने ...

india-भारत

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एशिया माने सूर्योदय का देश और यूरोप यानि सूर्यास्त का देश. पूरब के देश यानि अध्यात्म की भूमि और पश्चिम के देश यानि विज्ञान के जन्मदाता. जहां भी अध्यात्म का फुल खिला समझो पूरब की बात हो रही है और जहां पर भी विज्ञान की ऊचाईयों को छू लेने की बात हो रही है समझो पश्चिम में पहुच गए. जीवन के सत्य तक पहुचने के दो राजमार्ग है जिसका ही यह प्रतीक है ऐसा माना जा सकता है. पूरब के देशो में भी कोई खास जगह है जहां योग के किन्ही-किन्ही क्षणों में जीवन के अंतिम सत्यो से योगियों ने साक्षात्कार किया और मानवता के कल्याण के मार्ग सुझाया उस भूमि को ही कालान्तर में भारतवर्ष और आज भारत (india) के नाम से पूरी दुनिया पहचानती और जानती है. पश्चिम में जैसे विज्ञान की सर्वोच्च ऊचाई को छूने वाले अलबर्ट आइन्स्टाइन हुआ वैसे ही पूरब में अध्यात्म विज्ञानं के पहले वैज्ञानिक भगवान गौतम बुद्ध को माना जाता है. हलांकि भारत भूमि का सम्पूर्ण परिचय तो भगवान कृष्ण के जीवन दर्शन में ही मिलता है जो जीवन के सम्पूर्ण विधाओ के पोषक है. बावजूद जो अंतर्दृष्टि भारत को मिला उसे हम बुद्ध के रूप में ही जानते है. इसतरह बुद्ध पहले वैज्ञानिक ह...

What is Sannyasa - सन्यास क्या है?

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सन्यास जीवन का गहरा से गहरा सुगंध और गहरे से गहरा सत्य है. पहले तो बात सन्यास संसार से भाग जाने का नाम नहीं है यह जान ले. कर्तव्यों से भाग खड़ा होना को हम अभी तक सन्यास के नाम से जानते थे जो ठीक नहीं है. परिवार छोड़ देना, घर छोड़ देना, बच्चे छोड़ देना, पत्नी छोड़ देना और समाज से पीठ पीछे कर लेने का नाम सन्यास नहीं है. घर छोड़ कर पहाड़ो, पर्वतो और जंगलो में चले जाने का नाम भी सन्यास नहीं है. सन्यास एक विशुद्ध अध्यात्मिक घटना है जो बिना कुछ छोड़े सब कुछ स्वतः ही छुट जाता है. फिर घर में रहे या जंगल में कोई फर्क नहीं पड़ता. एक बात सन्यास घट गया तो समझो अपने घर में पहुच गए. उस घर में जिसमे कि योगियों ने लाख जतन कर पहुचना बताया है. सन्यास दुसरे पर आश्रित हो जीवन जीने का नाम भी नहीं है. बगैर उत्पादकता के कभी सन्यासी हुआ करते थे जिसका समय अब लदता जा रहा है. आज का सन्यासी बगैर उत्पादकता समाज पर बोझ मालूम पड़ता है. सन्यास के परिभाषा में राजा जनक का उदाहरण ज्यादा उपयुक्त लगता है. जो रहे तो जरुर राजमहल में लेकिन कुछ पकड़ ना रखे थे विदेही ही रहे. ऐसे रहे जैसे कि नहीं है और सब साक्षी होकर देखते रहे. करते तो थे...

Method of Meditation -ध्यान की पद्धति

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ध्यान (meditation) की मूलतः तीन प्रचलित विधि है कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग. ध्यान को विधि बताते हुये हमारे शास्त्रों में साक्षी रूपी मंजिल को पाने की ये तीन विधियाँ बताया है जिसमे पहले कर्म का जगत है जो कुछ किये रहा ही नहीं जा सकता उसके लिए कर्म और ध्यान को मिलाकर कर्मयोग फिर दुसरे तल पर विचार का जगत है जिसमें की साधक को चाहे वह शांत ही क्यों ना बैठा हो विचार का निरंतर प्रवाह चलता रहता है और रोके ना रुकता हो उसके लिए विचार के साथ ध्यान या कहे ध्यानपूर्वक विचार जिसे ज्ञानयोग कहा गया है और तीसरे में भाव का जगत है. भाव याने भक्ति या प्रेम कह सकते है जिसमे की भक्त को भावविभोर हो अश्रुधारा बह रहा हो उसेके प्रेम में सरोबार हो जाने को ही भक्तियोग का नाम दिया गया है. लेकिन तीनो ही दशाओं में पहुचना साक्षी की ही भावदशा में होता है यानि की ध्यान एक विधि है और साक्षी मंजिल है. जैसे कोई वैध औषधि को लेने की विधिया बताता है की चाहो तो शहद, दुध या पानी तीनो में से किसी एक के साथ औषधि लेना होंगा उसी प्रकार से ध्यान एक औषधि है जिसे चाहे कर्म, विचार या भाव तीनो में से किसी एक के साथ जोड़कर ही किया जाना...

PAAP - PUNY –पाप और पुण्य

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दूसरों को दुःख देना ही नहीं स्वयं को भी दुःख देना पाप है और दूसरो को ही नहीं स्वयं को भी आनंदित रखने का कोई भी प्रयास मात्र पुण्य ही है. वैसे इस पूरे संसार में कोई भी काम पाप और पुण्य की श्रेणी में नहीं आता है. खाली मान्यताये बस है. इस संसार के मूल्यों का कोई मूल्य नहीं है यदि आप अध्यात्मिक चेतना है,जागृत है तो और यदि आप सांसारिक है तो कुछ मूल्य बचा रहता है जिसे ही लोग पाप और पुण्य की श्रेणी में रखते है. हां, नैतिक और अनैतिक हो सकते है पर किसी कार्य से पुण्य और पाप नहीं होता है यह सिर्फ और सिर्फ मान्यताओं का ही खेल है. शास्त्रों में पाप-पुण्य का भी उल्लेख बताया गया है जो हम जैसे ही किसी संसारी ने ही रचा होंगा. जागृत चेतना इन क्रिया-काण्डो में नहीं उलझना चाहेगी. धर्मं ग्रंथों में पाप पुण्य का जहां तक सवाल है तो वह भी कल्पनाओ के जगत का ही प्रतिबिम्ब मालूम होता है. लेकिन जिन्होंने जाना है स्वयं का अस्तित्व उन्होंने कभी भी पाप-पुण्य और इस तरह के किसी आडम्बर में उलझाना उचित नही समझ मुक्त होने का मार्ग सुझाया है. लेकिन लोग तो आखिर लोग ठहरे वे अंधमान्यताओ के भ्रम जाल बुनते है और फिर उसमे ही फ...

Mnushya – मनुष्य

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मनुष्य बना है मन से अर्थात् जिसके पास मन हो वह ही मनुष्य है. कुछ लोग जानबूझकर मनुष्य को मनु महाराज से जोड़ते है जो ठीक नहीं है. उसी प्रकार जैसे अरबी में आदम का उल्लेख है जिससे ही आदमी शब्द की उत्पत्ति होने के बावत कही जाती है. हिन्दी के शब्द मनुष्य मन से ही बना है जिससे की अंग्रेज़ी का मैन Man बना है ठीक उसी प्रकार से मन से ही मनुष्य शब्द बना है. मनुष्य अर्थात् जिसके पास मन रूपी एक सूक्ष्म और कारण शरीर है उसे ही हमारे शास्त्रों में मनुष्य कहा गया है. मनुष्य होना इस जगत में एक बड़ी उपलब्धि है क्योकि मनुष्य होकर ही जीवन की गरिमा को उपलब्ध हो जाया जा सकता है. कहते है कि मनुष्य जन्म एक चौराहा है जहां से मनुष्य मात्र की उन्नति और अवनति के सारे रास्ते खुल जाते है. यहाँ से कोई परमात्मा भी हो सकता है. और चाहे तो उसकी गरिमा से नीचे भी गिर सकता है. सब कुछ मनुष्य पर निर्भर है. बीज रूप में वे सारे तत्व मनुष्य के पास मौजूद है जिससे परमात्मा हुआ जा सकता है या कह सकते है कि मनुष्य परमात्मा तक पहुच सकता है.