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Meditation – मेडिटेशन

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Meditation ध्यान का ही एक रूप है जिसमे अशांत चित्त को शांत करने का प्रयास सन्निहित है. जिस प्रकार योग एक बहुत बड़ा दर्शन है लेकिन आजकल उसका विकृत स्वरुप जिसमे हाथ पैर को आड़े तिरछा करना और व्यायाम करने जैसा बताया जाता है जबकि योग व्यायाम ना होकर एक अध्यात्मिक क्रिया है. योग का मतलब ही परमात्व तत्व से स्वयं को जोड़ लेना है जो एक अध्यात्मिक अनुभूति है. ठीक उसी प्रकार ध्यान भी Yog का एक प्रकार है लेकिन meditation ध्यान नहीं है चूकि ध्यान, करने का नाम ना होकर स्वतः हो जाने का नाम है जबकि meditation एक क्रिया है जिसे किया जाना होता है. मैडिटेशन में हम सुखासन का उपयोग करते है. सुखासन यानि जिसमे सुख पूर्वक बैठा जा सके. इस प्रकार सुख पूर्वक एक नियत जगह पर बैठकर आंखे बंद कर शांत बैठ जाना होता है जिसमे “मै कौन हूँ” की भावदशा में स्वयं को जानने का प्रयास भी शामिल होता है. शांत एकाग्रचित्त और मन को नियंत्रित करने के प्रयास को हम meditation कहते है जिसमे बैठे रहने के अतिरिक्त और कुछ नहीं करना होता है. बस बैठे रहने ही काफी होता है वह भी आंख बंद कर शांत चित्त. मैडिटेशन एक विशिष्ट विधि है मन को शांत करने...

Dhyan – ध्यान

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ध्यान निर्विचार होने की एक कला है. ध्यान meditation नहीं है जैसे आजकल Dhyan के लिए अंग्रेज़ी में मैडिटेशन शब्द का उपयोग किया जाता है वह सही नहीं है. मैडिटेशन एक प्रकार से विधि है, एक प्रकार से कोई क्रिया है जिसको किया जाता है जिसमे आँखे बंद कर शांत होना सिखाया जाता है जबकि ध्यान विधि ना होकर एक कला है जो विचार शून्य होने का ही नाम है जिसमे आँखे ही नहीं कान भी एक प्रकार से बंद मानकर चलना होता है. विचार शून्य की अवस्था को ही भारतीय मनीषियों ने ध्यान का नाम दिया था जो निरंतर अभ्यास से प्राप्त किया जा सकता है. दरअसल ध्यान वह अवस्था है जिसमे करते करते एक समय करने का भाव भी खो जाये यानि कर्ता होने का भाव तो मिट ही जाए साथ ही कार्य का भाव भी तिरोहित हो जाय. ऐसी भावदशा का नाम ही ध्यान है. जब तक कुछ भी करने का बोध है तब तक हम ध्यान की गहराई में नहीं पहुच सकते. हो जाना जिमसे कुछ करना ना पड़े बस हो जाये वह ध्यान की ही भाव भंगिमा का नाम है. जिसमे विचार भी पीछे छुट जाये और ध्यानी को अपना होने का भी भान ना रहे. हा, लेकिन शुरुआत तो ध्यान को करने से ही शुरू करना होंगा जो ना करने की स्थिति तक पहुचते पहुच...

Religion, Politics and Science – धर्म, राजनीति और विज्ञान

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धर्मं जहां पर नितांत अकेले का विषय है वहीं पर राजनीति भीड़ का रूप है. कोई भी यदि धर्मं के विषय में अन्य को शामिल करता है तो वह एक प्रकार से धर्मं का राजनीतिकरण ही कर रहा होता है हलांकि वह यह बात मानने को कतई तैयार नहीं होंगा अपितु फिर भी वह धर्मं के बुनियादी और आधारभूत सूत्र में चूक कर रहा होंगा. पूरी दुनिया आज राजनीति का वीभत्स रूप देखने मजबूर है. पूरी मानवता कराह रही है. ठीक उसी प्रकार से तथाकथित जो भी धर्म है उसने भी राजनीति से कोई कम जुल्म नहीं ढाया है. दुनिया के इतिहास में तथाकथित धर्मं और राजनीति ने जितना जुल्म ढहाया है उतना किसी और ने कभी नहीं ढहाया है इसलिए तो ये तथाकथित धर्मं, धर्म ना होकर एक संप्रदाय मात्र रह गए है. हर धर्मं अपने को दुसरे से श्रेष्ठ बताने की होड़ में दिखाई देता है. धर्मं से जहां शांति और सदभाव का झरना बहना चाहिए था वहा पर घोर अशांति और उपद्रव का अयोजन चहुओर किया जा रहा है. दुनिया में शांति और खुशहाली लाने विज्ञान ने अथक परिश्रम किया है लेकिन उनकी उपलब्द्धियो पर राजनीति का ग्रहण लग गया है. राजनीति आज सब पर भारी पड़ गया है. इतनी ताकत आखिर राजनीति को कहा से मिला यह...

Theist-Atheist-Agnostic-आस्तिक-नास्तिक-अज्ञेयवादी

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आस्तिक और नास्तिक में ज्यादा फर्क नहीं है क्योंकि दोनों ही मान्यताओं के आधार पर ही अपने को मात्र मान रखा है जानने का तो सवाल ही नहीं उठाया. माता-पिता, परिवार, शिक्षक और समाज ने ही उन्हें मान्यताओं के जाल में बांधा है. आस्तिक जहां एक ओर भगवान को मानता है बिना जाने की भगवान है या नहीं उसी प्रकार से नास्तिक भी यह मानता है कि जो दिखाई ही नहीं देता उसे क्यों माने. दोनों एक प्रकार से अन्धंमान्यताओं से ग्रसित है क्योकि दोनों ने ही जानने की जहमत नहीं उठाई. जानकर कि भगवान है या नहीं उस आधार पर कोई तत्वज्ञानी ही निष्कर्ष पर पहुच सकता है. साधारण मनुष्य तो मान्यताओं के खेल में ही उलझा रहता है. जिन्होंने भी उसे जाना फिर वो राम हो गए, कृष्ण हो गए, बुद्ध हो गए, महावीर हो गए, गोरखनाथ हो गए, पतंजलि हो गए, आदि शंकराचार्य हो गए, रामकृष्ण परमहंस हो गए, कबीरदास हो गए, मीराबाई हो गए और ना जाने कितने पहुच गए. हां, शर्त सिर्फ मानने को छोड़कर जानने की दिशा में कदम बढ़ाने वाले उन्नत आत्माये ही उसे जान सकता है इसमे कोई संदेह नहीं. पदार्थवादी कहे या फिर विज्ञानवादी ज्यादातर agnostic होते है जो जानने की दिशा में कदम...

Patanjali Yog पतंजलि योग दर्शन,

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महर्षि पतंजलि ने अपने योग शास्त्र में जिन आठ योग क्रियाओ अष्ठांगिक योग का वर्णन किया है उसमे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी को समाहित किया है. यम में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह को व नियम में पवित्रता, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर शरणागति अर्थात् प्राणिधान तथा आसन में सुखासन सिद्धासन और पद्मासन अर्थात् स्थिर और सुखपूर्वक जिसमे बैठा जा सके. प्राणायाम क्रिया तो हम सब जानते ही है. प्रत्याहार अर्थात् सांसारिक विषयों के प्रति मन में जो आकर्षण है जिसमे वह सुख का अनुभव करता है उसके प्रति उसकी आशक्ति का त्याग हो जाता है वह अब इनके मोह को छोड़कर आत्मज्ञान की ओर आकर्षित होता है मन की इसी स्थिति को प्रत्याहार कहा गया है. धारणा जिसके आधार पर कोई स्वयं को कुछ विशेष मानकर सिद्धि को आत्मसात कर लेवे एवम् ध्यान जिसमें निर्विचार होने की कला आ जावे और अंत में समाधि को प्राप्त कर ले. यानि कि योग के शिखर को उपलब्ध हो जाये या ध्यानस्थ हो जाये.

Heaven, Hell, Salvation, Religion, स्वर्ग, नर्क, मोक्ष एवं धर्मं

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स्वर्ग नर्क और मोक्ष वैसे तो मानसिक दशाओं की स्थिति का नाम है बावजूद अधिसंख्य लोग कल्पनाओ में स्वर्ग और मोक्ष को भौतिक जगत में कोई स्थान और परलोंगिक कोई लोक मानते है जहां पर होने से शरीरगत कोई भी दुख पीड़ा और संताप से इन्सान मात्र मुक्त होता है और जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है. दरअसल मनुष्य की कल्पना में औरो से श्रेष्ठ हो जाने की बहुत बड़ी लालसा छिपी होती है जिसका ही यह सूचक मात्र है. जहां तक बात नर्क की है तो यह भी कल्पनाओ के जगत की ही पैदावार है. वस्तुतः स्वर्ग नर्क और मोक्ष मानसिक तल का नाम है जिसमे सिर्फ जीया जा सकता है. कोई व्यक्ति नारकीय वातावरण में रहकर भी स्वयं स्वर्गातित अनुभव को उपलव्ध हो सकता है यह उसके मानसिक तल की गहराई और ऊचाई का ही प्रतिबिम्ब होंगा. हां, इतना जरुर तय है की इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए मनुष्य का जन्म जरुरी होंगा. इस चौराहे पर आना तो होंगा ही. मनुष्य का जन्म वो चौराहा है जहां से मनुष्य चाहे तो पशु भी हो सकता है और चाहे तो देवता. सब कुछ उनके मानसिक धरातल पर निर्भर करेगा. स्वर्ग और मोक्ष का रास्ता इसी चौराहे से ही होकर जाया जा सकता है यह तय है इसमे कोई सं...

Jatmai, Ghatarani जतमई और घटारानी मंदिर

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माँ जतमई देवी का प्रसिद्ध तीर्थ और पर्यटन स्थल तौरेंगा जंगल की पहाड़ी पर विराजमान है. यहाँ पहुचने के लिए गरियाबंद जिले के प्रसिद्ध धार्मिक नगरी राजिम जो राजधानी रायपुर से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर है पहुचना होगा. राजिम से 35 किलोमीटर की दूरी पर गरियाबंद रोड पर यह प्रकृति का सुन्दरतम नजारा विद्ममान है. ग्राम पांडुका से 15 किलोमीटर जंगल के रास्ते आगे जाने पर तौरेंगा गाँव है और इसी गाँव की पहाड़ी पर माँ जतमई देवी का गढ़ है. घने जंगलो के बीच एक झरना नीचे बहता हुआ आ रहा है जो नीचे तौरेँगा जलाशय के रूप में लबालब नजर आता है. ऊपर जो झरना बह रहा है वहीं झरना यहाँ आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का एक बड़ा कारण भी है. दर्शनाथी और पर्यटक इस झरने में नहाने आतुर रहते है. बरसात के दिनों में यह झरना तेज बहता है इसलिए इस दौरान सावधानीपूर्वक झरना में उतरना होता है जबकि गर्मीयों में यह झरना लगभग सुख सा जाता है. जहां तक बात माँ जतमई देवी का है तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पूर्व यहाँ पहुचना बहुत दुर्गम था और कठिन रास्तो से जाया जाता था. यहाँ तब पैदल ही पंहुचा जाया जा सकता था. तौरेँगा गाँव के बाद से यहाँ पहुचने कोई ...